,,,,,,,,,,, अम्मा,,,,,,,,,,,,,
सारे रिश्ते नाते झूटे निकले
जेठ के दुपहर अम्मा निकली
गर्म हवा आतिश अंगारे
झरना दरिया झील समंदर
भीनी सी पुरवाई अम्मा !
घर के झीने रिश्ते मैंने,
हर सिक्षा का हर गुण ग्यानी
अम्मा जैसी कोई न मिले,
लाखों बार उधडते देखे,
चुपके-चुपके कर देती थी
जाने कब तुरपाई अम्मा!!
अम्मा का हृदये कमल सा लगा,
दुःख दर्द सब मिट जाता था
सबसे प्यारी सबसे न्यारी है हमारी अम्मा !!
,,,,,,,,,,,,,,सदा बहार ,,,,,,,,,,
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